Jahnavi Sharma

Add To collaction

आकांक्षा: द डेविल्स एंजेल - 5

सुबह के 11 बज  रहे थे। 
राजवीर के जाने के बाद आकांक्षा और जानवी दोनो हॉल मे बैठ कर अपना प्रोजेक्ट बना रही थी। उन दोनो का मन अभी भी मोहनदास जी की बातों मे उलझा था। 

जानवी ने अचानक पूछा, "अक्षु तुझे क्या लगता है.... क्या ये पिशाच, डायन,चुड़ैल, भूत वगेरह सच में होते हैं..... या यह सब हमारे मन का वहम है?"

 "पता नहीं यार ... देखा नहीं न्यूज़ में..... कैसे आए दिन जंगल के बाहर लाशें मिल रही है। और उनकी गर्दन के पास किसी जानवर के काटने का निशान भी। अगर सच में जंगल में कोई जानवर है, जो लोगों को मारता है, तो वह सब को गर्दन के पास ही क्यों काटता है? और हमेशा उसी जगह पर ही क्यों?" आकांक्षा ने उसके सवालों के जवाब देने के बजाय और नये सवाल खड़े कर दिए। 
दोनो बात करते हुए साथ में काम भी कर रही थी क्योंकि अगले ही दिन उन्होंने अपना प्रोजेक्ट सबमिट करवाना था। 

जानवी ने पेपर कटर से पेपर काटते हुए कहा, "पता नहीं यार क्या सच है और क्या वहम.... कब से दिमाग उसी में लगा है। कुछ और करने का मन ही नहीं करता। ऊपर से ये प्रोजेक्ट नाम की बला सिर पर मंडरा रही है।"

जानवी का सारा ध्यान बातों में था। इस वजह से पेपर कटर से उसका हाथ कट गया। कट गहरा लगने की वजह से उसमे बहुत खून बहने लगा। आकांक्षा उसे देखकर बहुत घबरा गयी। 
"ये क्या किया तूने .... जानवी देख कितना खून बह रहा है। तु भी ना... बस जब देखो पटर पटर करती रहती है। ध्यान कहाँ रहता है तेरा?"

"कहीं हमारे आस पास कोई पिशाच हुआ और मेरा खून देखकर यहां पर आ गया तो..... कुछ कर अक्षु! मुझे बहुत दर्द हो रहा है।" जानवी को ऐसी परिस्थिति मे भी मजाक सूझ रहा था। 

"तेरा कट तो बहुत डीप है यार। हमें हॉस्पिटल जाना ही पड़ेगा। ऐसा करती हूँ मैं घाव का खून रोकने के लिए कुछ बांध देती हूं।"

जानवी दर्द से चिल्लाते हुए बोली, "आआहह..! जो करना है जल्दी कर। मुझे बहुत दर्द हो रहा है।"

आकांक्षा दौड़कर फर्स्ट एड बॉक्स लेकर आई। उसने जानवी की चोट को साफ कर उस पर बैंडेज कर दिया। 
"जानवी मैंने पट्टी बांध दी है। उसके बावजूद तेरा खून ही नहीं रुक रहा। हमें जल्दी से जल्दी हॉस्पिटल जाना पड़ेगा। तू एक काम कर .... मेरे पीछे बैठ, मैं स्कूटी चलाती हूं।"

"मैं कहीं नहीं जाऊंगी। कहीं रास्ते में कोई पिशाच मिल गया ....और...  और मेरा खून देखकर मेरे पास आ गया तो?"

"अगर मिल गया तो मैं उससे डील कर लूंगी। मै उसे बोल दूंगी कि तेरे बदले किसी और जानवर का खून ले ले।" आकांक्षा ने उसकी टांग खींची। 

जानवी ने आँखे तरेरकर जवाब दिया, "मैं क्या तुझे जानवर दिखाई देती हूं .... जो तू मेरे बदले किसी और जानवर का खून देगी। हाय..! मेरी तो कोई वेल्यू ही नही करता। एक अच्छी खासी लड़की की तुलना जानवर से की जा रही है। ये सुन ने से पहले ये धरती फट क्यों नही गयी... या तुझे कोई पिशाच उठा कर क्यों नही ले गया।"

उसकी बात सुनकर आकांक्षा ने हँसते हुए कहा, "बस कर ड्रामा क्वीन! और हां ... अब तुझे दर्द नहीं हो रहा... मुझसे बहस करते हुए ? चल आ जा जल्दी से.... घर को लॉक करके चलते हैं। दद्दू को भी बताना पड़ेगा। वरना वह यहां पर आए और हम घर पर नहीं मिले तो पूरे शिमला सिर पर उठा लेंगे।"

आकांक्षा जानवी को जल्दी से हॉस्पिटल लेकर गयी। रास्ते मे जानवी राजवीर जी को फोन पर सब बता दिया। 
कुछ देर बाद वो लोग सिटी हॉस्पिटल में थे। जानवीकी चोट पर डॉक्टर स्टिचेज (टांके) लगा रहे थे। जबकि आकांक्षा बाहर बैठ कर उसका इंतज़ार कर रही थी। 
वो वहाँ बाहर वेटिंग एरिया के एक बेंच पर बैठी थी कि तभी इंस्पेक्टर दुबे एक डॉक्टर के साथ उसी तरफ आए। 

इंस्पेक्टर दुबे ने डॉक्टर से पूछा, "डॉक्टर क्या उस लड़के की लाश को कोई लेने आया, जिसकी लाश  3 दिन पहले उन्ही जंगलो के बाहर मिली थी।"

"नहीं इस्पेक्टर ... अभी तक तो कोई भी नहीं आया। और मुझे नहीं लगता कि कोई आएगा भी.... हमें उसका अंतिम संस्कार करवा देना चाहिए।

"उस लड़के के पास से भी कुछ ज्यादा सामान बरामद नहीं हुआ। जिस से उसके बारे मे पता लगाया जा सके। उसके बैग मे कुछ खाने पीने का सामान था और साथ में दो तीन किताबें और एक स्लिप.... लगता है  उस लड़के ने यही शिमला की किसी लाइब्रेरी से बुक सेंशन करवाई थी। अब लड़के का नाम पता अच्छे से नहीं मालूम, तो कौन जगह-जगह जाकर उसके बारे में पता लगाएं। उन सभी किताबो की एक ही खासियत है कि वो सभी किताबे पिशाचों के ऊपर थी। ऊपर से उसके लास्ट सीन जंगलों के बाहर मिली थी उनमें पिशाचों मे होने की अफवाह भी फैली हुई है। लगता है वो लड़का जंगल में पिशाच को ढूंढने गया था।" इंस्पेक्टर दुबे ने कहा। 

"वैसे तो साइंस इन सब अंधविश्वास में बिलीव नहीं करती है। लेकिन इतने सारे लोगों का एक ही तरीके से मरना कोई इत्तेफाक तो नहीं हो सकता ना... इन लोगों की डेड बॉडी में खून की एक बूंद भी नहीं मिली है। इसके अलावा सभी डेड बॉडीज की गर्दन के राइट साइड ही जानवर के काटने के निशान हैं।  काटने का तरीका और निशान हर बार एक ही होता है।" डॉक्टर ने गंभीरता से जवाब दिया। 

" लेकिन हम भी क्या कर सकते है डॉक्टर साहब! अब इतनी हिम्मत भी किसी की नहीं पड़ती कि जंगल में जाकर पूरी खोजबीन कर के आए। हमें तो रिपोर्ट देनी है... वह दे देंगे।"

वह दोनों आकांक्षा से थोड़ी ही दूरी पर खड़े होकर बातें कर रहे थे। उनकी बातें आकांक्षा के कानों में आराम से पड़ रही थी और उसने उनकी सारी बातें ध्यान से सुनी। उनकी बात खत्म होते डॉक्टर वहाँ से चले गए। दुबे वहां खड़े होकर किसी से फोन पर बात कर रहे थे। उन्हें वहां रुका हुआ देखकर ना चाहते हुए भी आकांक्षा के कदम इंस्पेक्टर की तरफ बढ़ गए।

"एक्सक्यूज मी सर.... क्या मैं वह किताबें देख सकती हूं ?"


इंस्पेक्टर दुबे ने पूछा, "और आप कौन हैं ? वो किताबे विक्टिम के पास से मिली है। तो वह किताबें मैं आपको नहीं दे सकता।"

"मैं आपको उस लड़के की फैमिली तक पहुंचने में मदद कर सकती हूं। कल ही मैं लाइब्रेरी गई थी। तब उस लड़के के बारे में वहां के लाइब्रेरियन पूछ रहे थे। वो आपकी लड़के के परिवार तक पहुँचने मे मदद कर सकते है। वहां पर उस लड़के का फोन नंबर भी लिखा था। उसके जरिए भी उसके बारे में काफी कुछ पता लगाया जा सकता है।" 

आकांक्षा की बात सुनकर इंस्पेक्टर दुबे चिढकर बोले, "बस बस हमें अपना काम मत सिखाओ। और तुम उस लड़के को कैसे जानती हो?" दुबे ने उसकी तरफ संदेह भरी नजरों से देखा। 

"जानती तो नहीं ....लेकिन उन बुक्स के जरिए हम लाइब्रेरी में जाकर पूछताछ करेंगे.. तो शायद कुछ पता चल जाए।"

"देखिए मैडम यह पूछताछ करने का काम हमारा है.... आपका नहीं। तो आप इन सब से दूर रहिए। इसी में आपकी भलाई हैं। रही बात को किताबें देने की,  तो वह विक्टिम के पास से मिली है। तो वो किताबें आपको नहीं मिल सकती। आप ये सोचिएगा भी मत।" दुबे ने उसे झिड़क दिया। 

"लेकिन मुझे वो बुक्स देखनी थी। एक बार आप मुझे वो किताबे दे दीजिए। प्लीज .....!"

"वो किताबें आपको नहीं मिल सकती मैडम। आप क्यों अपना वक्त जाया कर रही है।"

आकांक्षा ने कहा, "बुक्स तो मैं लेकर रहूंगी। जब आप लाइब्रेरी में जमा करवा देंगे, उसके बाद ले लूँगी।"

"वो किताबें अब लाइब्रेरी में जमा नहीं होंगी। क्या पता उन बुक्स की वजह से उस लड़के की जान गई हो?" 

वह दोनों आपस में बहस कर रहे थे कि तभी जानवी भी वहां पहुँच गयी। दुबे को देखकर उसने उनके पैर छूकर बोला, "अरे दुबे अंकल आप यहां?"

"खुश रहो बेटा। लेकिन तुम यहां पर क्या कर रही हो... और ये चोट?" 

उन्हे आराम से बात करते देख आकांक्षा ने हैरानी से पूछा, "जानवी तुम जानती हो इनको?"

"हां... अक्षु यह मेरे मौसा जी है। पर तुम इनसे क्यों बहस कर रही हो?"

" देख ना जानवी... कितना बड़ा कोइंसिडेंस है। याद है कल उस लड़के की लाश देखकर मैं बेहोश हो गई थी। वो वही लड़का था, जो लाइब्रेरी से बुक्स लेकर गया था। हम जिन बुक्स को ढूंढ रहे थे, वो अब इनके पास है और यह हमें देने से मना कर रहे हैं।" आकांक्षा ने मुँह बना कर कहा। 

"प्लीज अंकल बस सिर्फ 1 दिन के लिए हमें दे दीजिए।" अब जानवी भी उनसे किताबों की जिद करने लगी। 

इस्पेक्टर दुबे, जो अब तक आकांक्षा से थोड़ा सख्ती से बात कर रहे थे, उन्होंने अब थोड़ा नरमी से बोला, "देखो बच्चियों यह मेरी जॉब का सवाल है। अगर किसी को पता चल गया तो ....!"

"पर अंकल किसी को क्यों पता चलेगा? प्लीज आप हमें वह बुक्स दे दीजिए। प्लीज.... प्लीज.... प्लीज।" जानवी उनसे बच्चों की तरह जिद करने लगी। 

इंस्पेक्टर दुबे ने धीमी आवाज मे जवाब दिया, "ठीक है .... लेकिन सिर्फ 1 दिन के लिए। कल इसी वक्त आकर तुम दोनों मुझे वह किताबे पुलिस स्टेशन में जमा करवाओगी।"

आकांक्षा और जानवी एक साथ चहक कर बोली, "हां अंकल प्रॉमिस.....!"

इंस्पेक्टर दुबे उन दोनों के साथ रिसेपशन पर गए, जहां उन्हें उस लड़के का सारा सामान दिया गया। एक छोटे से बैग के अंदर वह तीन किताबें भी मौजूद थी, जो उस लड़के ने लाइब्रेरी से सेंशन करवाई थी। इंस्पेक्टर दुबे ने सबकी नजरों से छुप कर धीरे से वो किताबें उन दोनों को पकड़ा दी, जिसे लेकर वह घर आ गई।  


★★★★

रात का समय के 12 बज रहे थे। चारों तरफ शांति पसरी थी। 
तभी अचानक से जंगलों के अंदर बहुत ही भयानक स्वर होने लगा। जिसने एक ही पल में वहां मौजूद शांति को नष्ट कर दिया। अचानक चारों तरफ धूल का उड़ने लगी। ऐसा लग रहा था मानो आधी रात को धूल का बवंडर आया हो। 
 धरती में एक अलग ही कंपन हो रहा था. .. मानो कोई पेड़ों को उखाड़ रहा हो। वह कंपन इतना तेज था कि उससे दूर-दूर तक की जमीन हिल रही थी। 

जगंल का माहौल बहुत ही भयावह होता जा रहा था। मानो  1850 का इतिहास आज खुद को दोहरा रहा था, जो आज से इतने सालों पहले हुआ था। वही मौत का मंजर आज फिर छाया हुआ था। ऐसा होने की एकमात्र वजह थी, कि जंगल मे रीवांश अपने उन्ही कपटी साथियो रवि, रघु, विजय, संजय के साथ अपने असली शैतानी रूप मे थे। और उन चारो पिशाचो ने मिलकर पीछे से रीवांश पर हमला बोल दिया था। 


रीवांश ने चारो को एक झटके मे दूर फेंकते हुए कहा, "भले ही आज से कुछ साल पहले हम कमजोर थे।" उसने जोर से गुर्राते हुए बोला, "लेकिन आज नही..! पिशाचों के इतिहास मे हमसे शक्तिशाली आज तक नही हुआ।"

वह चारों कमजोर नजरों से रीवांश की तरफ देख रहे थे। "आपने हमारी दोस्ती और मासूमियत का फायदा उठाया और आप लोगों की वजह से आज हम यह शापित जिंदगी बिताने पर मजबूर हैं। ना जाने हमने अनजाने में कितने मासूमों का खून कर दिया। लेकिन अब जब हम दरिंदे बन ही गए हैं, तो सबसे पहले तुम चारों गद्दारों को खत्म कर देंगे।" रीवांश सपने बड़े बड़े कदम बढ़ाते हुए उनकी तरफ बढ़ने लगा। 

उसे करीब आता देख रघु हिम्मत करके खड़ा हुआ और उसने पास का पेड़ उखाड़ कर रीवांश पर हमला बोल दिया। 
"मासूम तो आप तब भी नहीं थे युवराज.... अनजाने में ही सही आपने भी एक बहुत बड़ा पाप किया था। जिसकी वजह से आप यह जीवन बिताने पर मजबूर हो। मासूमों की रक्षा करने के लिए आपका भगवान आता है, लेकिन गुनहगारों के लिए शैतान आता है। तभी उस रोज आपका भगवान नहीं, हमारा शैतान आया था।"

रीवांश ने उस पेड़ को पकड़ कर वापिस उसी की तरफ वापस फेंक दिया। 
"अंजाने में की गई गलती की कोई सजा नहीं होती है। हमें समझ नहीं थी जब हम से वो पाप हुआ था।"

संजय ने एक बार फिर पीछे से वार करते किया। उसके वार से रीवांश थोड़ा लड़खड़ा गया। 
"अब तो समझ है ना?  अब क्यों उन मासूम लोगों का खून पीते हो? तुम्हारे ग्रह नक्षत्र सबसे ज्यादा शक्तिशाली थे। इसी वजह से हमने तुम्हें उस पूजा में बिठाया था। तुम्हें नहीं पता, जिनके नक्षत्र शक्तिशाली होते है, उन्हें कभी कोई वश में नहीं कर सकता। लेकिन फिर न शैतान की परछाई तक तुम पर हावी हो गई। तुम्हारे उस अनजाने में किए गए पाप की वजह से शैतान ने तुम्हारी आत्मा को अपने काबू में कर लिया।"

रीवांश ने गुस्से मे उसे उठाकर वहां से दूर फेंक दिया और जोर से गुर्राते हुए बोला, "तुम लोगों ने तो तब भी हमें छला था और आज भी पीछे से वार .... भूल गए क्या? पिशाचों में सबसे शक्तिशाली पिशाच हम हैं। बाकी तुम लोगों की हमारे आगे कोई औकात नहीं..... ना कल थी और ना ही आज।"

वह चारों मत खा चुके थे। रघु और संजय को तो उसने पहले ही उठाकर दूर फेंक दिया था। रवि और विजय अभी भी वहीं पर गिरे हुए पड़े थे। वो वहां से जाने लगा, तो उस दोनों ने मौका देखकर उस पर दो तरफा वार किया। 
 "कभी तुम्हारी भी कोई कमजोरी होगी. ... जिसकी वजह से तुम्हें भी एक दिन हार का सामना करना पड़ेगा। उस दिन इस जंगल और पिशाचों के राजा तुम नहीं हम बनेंगे।" रवि गुस्से मे गुर्राया। 

रीवांश ने अपने दोनो हाथो से उन दोनों का गला पकड़ कर हंसते हुए कहा, "चार –चार राजा?" तब भी तुम चारों जाहिल इसी तरह लड़ोगे और एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाओगे। लेकिन ऐसा दिन कभी नहीं आएगा। तुम चारों क्यों बार-बार हमसे भिड़ने के लिए आ जाते हो ... जबकि पता है कि हर बार मात तुम चारों की ही होगी। यहां अपनी शक्ति का थोड़ा बहुत प्रदर्शन करते रहो क्योंकि इस जंगल के बाहर तुम्हारी कोई औकात है।"

विजय ने अटकते हुए कहा, "ओ....औकात तो त....तुम्हारी भी नहीं है, इस जंगल के बाहर... भले ही तुम होंगे सबसे शक्तिशाली पिशाच, लेकिन हो तो एक पिशाच ही। और तुम भी जानते हो कि पिशाच चाहे शक्तिशाली हो या कमजोर.... छोटा हो या बड़ा.... उन सब की कमजोरी एक ही होती है।" 

रीवांश ने गुस्से में उन दोनो को उठाकर अलग-अलग दिशाओं में फेंक दिया। उससे जंगल में एक बहुत ही भयानक स्वर उत्पन्न हुआ। शिमला में इतना भयानक कंपन हुआ मानो वहां कोई भूकंप आया हो। 

रीवांश ने गुस्से मे जोर से गुर्राते हुए कहा, "क्यों... हमारे साथ ही क्यों हुआ.... हम इतने सालों से तड़प रहै है। ना चाहते हुए भी आज यह शापित जीवन बिताने पर मजबूर है। क्या कोई भी नहीं है, जो हमें इस पिशाच के जीवन से मुक्ति दिला सकेगा ? उस अनजाने में की गई गलती की हमें इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी.... यह हमने कभी नहीं सोचा था। दम घुटता है हमारा इस जीवन से.... हमें मुक्ति चाहिए ....बस मुक्ति।" 
बोलते हुए रीवांश की आँखे छलक उठी और इसी के साथ वो अपने इंसान स्वरूप में आ गया। उसके अंदर की तरफ उसके आंखों से पानी बनकर बह रही थी, जहाँ वो इस पिशाची जीवन से मुक्ति पाना चाहता था। 


क्रमशः....! 

   28
4 Comments

shweta soni

26-Jul-2022 07:19 PM

Behtarin rachana

Reply

Art&culture

03-Jan-2022 11:35 PM

Bahut badhiya

Reply

Ali Ahmad

26-Dec-2021 04:23 PM

Very nice....!

Reply